पृथ्वी पर इंसान कब आया

पुरातत्ववेत्ताओं (आर्कियोलॉजिस्ट) का अनुमान है कि धरती पर सबसे पहले मानव जैसे लोग आज से लगभग 53 लाख वर्ष पूर्व प्रकट हुये। 

धीरे-धीरे कई प्रकार के मानव धरती पर अस्तित्व में आये परन्तु कुछ समय के पश्चात वह लुप्त हो गये। 

आज का मानव (Homo Sapiens) लगभग 2,00,000 वर्ष पूर्व धरती पर अस्तित्व में आया।


पहले विद्वानों को 19वीं शताब्दी तक के पूर्व इतिहासकाल के बारे में बहुत कम जानकारी थी। विद्वानों ने उन स्थानों पर खुदाई की जहाँ पर किसी समय मनुष्यों के रहने की सम्भावना समझी। वस्तुओं से मिली जानकारी के आधार पर विद्वानों का विचार है कि मानव जाति का इतिहास लगभग 40 लाख वर्ष पुराना है।


मनुष्य की उत्पत्ति

मनुष्य नर वानर (Primates) वर्ग से सम्बन्ध रखते हैं। मनुष्य, बंदर तथा लंगूर इसी वर्ग से सम्बन्ध रखते हैं। उनके शरीर पर बाल होते हैं। उनके दाँत कई प्रकार के होते हैं। उनके शरीर के तापमान में स्थिरता होती है।

28-30 लाख वर्ष पहले इन नर वानरों में एक और समूह उत्पन्न हुआ जिनको मनुष्य परिवार के पशु अथवा महावानर (Hominid) कहा जाता है, इनमें वनमानुष भी सम्मिलित है। 

मनुष्योत और नर वानरों में अनेक समानतायें पाई जाती थी।

मनुष्य का सिर बहुत छोटा तथा पीछे की ओर झुका हुआ था। उनके शरीर पर घने बाल होते थे। वे बोल नहीं सकते थे परन्तु समझने योग्य ध्वनि निकाल सकते थे। वे भ्रमणकारी थे तथा भोजन की तलाश में जगह-जगह घूमते रहते थे। आरम्भ में वे पशुओं की भान्ति चार टांगों पर चलते थे।

 परन्तु समय बीतने पर वे सीधे खड़े होकर हाथों का प्रयोग करने लगे।

आस्ट्रेलोपिथिक्स (Australopithecus), 40-30 लाख वर्ष पूर्व तक

आस्ट्रेलोपिथिक्स के प्रथम अवशेष 1959 में तंजानिया के Olduvai Gorge में, ब्रिटिश पुरातत्व विज्ञानी Mary Leakey द्वारा खोजा गया था।

प्रथम वनमानुष को आस्ट्रेलोपिथिक्स अथवा Southern ape कहा जाता है। वे पूर्वी अफ्रीका में पाये जाते थे। उनमें मनुष्यों की विशेषतायें पाई जाती थीं। वे खड़े हो सकते थे। परन्तु आस्ट्रेलोपिथिक्स तथा वनमानुष के हाथों की बनावट में अन्तर था। 

इन्हीं आस्ट्रेलोपिथिक्स की एक उपजाति को Zinjanthropus कहा जाता था तथा वह पत्थर के औजारों का प्रयोग करते थे। वे पशु जीवन व्यतीत करते थे तथा जंगली कीडे-मकोडे खाते थे।

होमो हैबिलिस (Homo Habilis), 24-14 लाख वर्ष पूर्व तक

वैज्ञानिकों को होमो हैबिलिस मानव द्वारा जलाई गई आग के अवशेष प्राप्त हुये हैं तथा उन्होंने उसका निरीक्षण करके उसका समय भी निश्चित किया है। उन्हें उन स्थानों पर पत्थर के औज़ार तथा पशुओं की हड्डियां भी प्राप्त हुई हैं।

 इससे संकेत मिलता है कि होमो हैबिलिस जानवरों का शिकार करते थे तथा पशुओं की हड्डियों का मज्जा (bone marrow) भी एकत्रित करते थे। इन अवशेषों से यह भी पता चलता है कि होमो हैबिलिस अधिक समय तक एक स्थान पर निवास नहीं करते थे बल्कि वह भोजन की खोज में विभिन्न स्थानों पर भ्रमण करते थे।

इस काल में मनुष्य के पंजे इतने कठोर नहीं थे कि वह लड़ाई में काम आ सके। वह तीखे दांतों वाले बाघो और शेरों का सामना नहीं कर सकते थे। मनुष्य को अपनी जान बचाने के लिए फुर्ती से काम लेना पड़ता था। 24 से 14 लाख ई.पू. के बीच के काल का मनुष्य पत्थर के शस्त्र बनाते थे।

होमो हैबिलिस अपने पूर्वजों की अपेक्षा अधिक लम्बे थे। यह लोग पत्थर के औज़ार तथा शस्त्र बनाते थे मनुष्य, सुरक्षा तथा क्षमता के लिए छोटे समूह मिल कर बड़े समूह बना लेते थे। इन समूहों का आकार भोजन की उपलब्धि पर निर्भर करता था।

होमो हैबिलिस मनुष्य आग जला कर इसके इर्द-गिर्द इकट्ठे बैठ कर आनन्द लेते थे।

 परन्तु वह स्वयं आग जलाना नहीं जानते थे, इसलिए उनको तब तक प्रतीक्षा करनी पड़ती थी जब तक कि उन्हें कोई जलती हुई वस्तु न मिल जाये जिसकी सहायता से वह किसी अन्य वस्तु को जला सके।


सीधा खड़े होने वाला मनुष्य (Homo Erectus), 19-143,000 लाख वर्ष पूर्व तक

इस काल में मानव ने आग जलाना सीख लिया था। वह अफ्रीका से चल पड़ा तथा लगभग 10 लाख वर्ष पूर्व विश्व के कई भागों में फैल गया।

इस काल के मनुष्य को विकसित होने में और 2 लाख वर्ष लग गये। सीधे खड़े होने वाले मनुष्य का आकार लगभग इतना ही था जितना कि अब है परन्तु उसकी खोपड़ी का आकार आज के मनुष्य की खोपड़ी के आकार का लगभग दो तिहाई था। अब वह और अधिक अच्छे हथियार बनाने लगा था।

 उसने पत्थर के कुल्हाड़े तथा चाकू बनाये जिनका उसने शस्त्रों के रूप में प्रयोग किया। सम्भवतः सबसे पहले शिकारी यहीं मनुष्य था। इस मनुष्य को आग जलाने का ढंग भी आता था। इस खोज से मानव के जीवन में नाटकीय परिवर्तन आये।

 यह आरंभिक मनुष्य सम्भवतः भोजन की खोज में अफ्रीका से यूरोप तथा एशिया से अमेरिका जा पहुँचा। होमो इरेक्टस की जानकारी हमें पीकिंग (चीन) से मिले इस काल के मनुष्यों के अस्थि पंजर से मिलती है। इस अस्थि पंजर को पीकिंग मैन के नाम से भी जाना जाता है। 

इस काल के मनुष्यों द्वारा बनाये गये औजार तथा शस्त्र भी प्राप्त हुये हैं। इन शस्त्रों तथा औजारों से हमें यह पता चलता है कि वह लोग किस प्रकार रहते थे, किन दिशाओं में गये और वहाँ कैसे पहुंचे।

आज का बुद्धिमान मनुष्य (Homo Sapiens), 3,00,000 लाख वर्ष पूर्व से आज तक

इस काल के अवशेषों से पता चलता है कि इन आरम्भिक मनुष्यों के अस्थि-पंजर वर्तमान मनुष्य के अस्थि पंजर के आकार जैसे ही थे। 

होमो सैपियन मनुष्यों की खोपड़ी होमो इरेक्टस मनुष्य की खोपड़ी से अधिक बड़ी तथा अधिक आगे की ओर झुकी हुई थी। इससे मस्तिष्क का आकार बढ़ने के लिए स्थान की गुंजाईश थी।

 इस काल का मनुष्य शिकार द्वारा भोजन इकट्ठा करता था। वह पत्थरों के औजारों, सुइयां तथा हड्डियों से मछली पकड़ने के कांटे बनाता था।

 वे जानवरों की चमड़ी को जानवरों की अंतड़ियों के धागे बना कर सीते थे। वह चमड़ी से गर्म जूते भी बनाते थे।

निअंडरथल (Neanderthal), 1,50,000,-2,00,000 वर्ष पूर्व तक

यह शब्द जर्मनी के निअंडर घाटी से लिया गया है, जहां से निअंडरथल मानव के अस्थि-पंजर प्राप्त हुए थे। यह आरम्भिक मनुष्य की अन्य जातियों से भिन्न थे। वह अधिक लंबे, मजबूत तथा शक्तिशाली थे।

 ऐसा प्रतीत होता है कि वह उस समय के अनुसार बहुत विकसित थे। वे बहुत कुशल शिकारी थे। वह प्रायः गुफाओं में रहते थे। वे आग जलाने में बहुत निपुण थे तथा सम्भवतः हमेशा अपना भोजन आग में पका कर खाते थे।

वे मृतकों को कुछ रीतियों के अनुसार दफनाते थे। ऐसा प्रतीत होता है वह किसी धर्म में भी विश्वास रखते थे।

 निअंडरथल काल के कब्रिस्तान के स्थान पर की गई खोजों से ऐसा प्रतीत होता है कि वे मृतक शरीर को रंगों से सजाते थे। वे प्रथम मनुष्य थे जो मृत्यु के पश्चात जीवन के सम्बन्ध में सोचते थे।

आखरी शब्द 
इस तरह से आप समझ सकते है की पूर्ण विकसित मानव को पृथ्वी में आए लगभग 3 लाख वर्ष हुए है लेकिन धर्म ग्रंथो में हम लाखो करोड़ों पुराना बताकर वेबकूफ बनाया चला आता गया है |

खासकर बिना पढ़े लिखे लोग आसानी से इन बातो को मान लेते है और आने वाली पढ़ी लिखी को भी ये अंधविश्वास मानने को मजबूर कर देते है |

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