आस्तिक vs नास्तिक : सच्चा और झूठा

ओशो कहते हैं की

आस्तिकता और नास्तिकता का कोई संबंध ईश्वर को मानने या नही मानने से नही है. तथाकथित आस्तिक बिना खोज किए मान कर बैठ गया है की ईश्वर है और नास्तिक बिना प्रयोग किए मान कर बैठ गया है की ईश्वर नही है. ये दोनो ही ग़लत हैं! ज़रा थोड़ा श्रम करो और कुछ प्रयोग करो फिर कहना की ईश्वर है या नही. और है तो कैसा है. मगर यहाँ तो सीन कुछ अलग ही है-मुस्लिम हिंदू को बोल रहा है की हिंदुत्व ग़लत और हिंदू इस्लाम को ग़लत बताता है. जानता कोई नही! एक दूसरे को ग़लत सिद्ध करने की होड़ सी लगी है |


ओशो कहते हैं- नास्तिक वह है जो नकार मे जीता है और आस्तिक वह है जो स्वीकार मे जीता है. नास्तिक वह है जो अपनी ढाई चावल की खिचड़ी अलग पकाए और आस्तिक वह है जिसका परमात्मा के हाथ मे हाथ है.

आस्तिक ढोंगी और नास्तिक ढोंगी

जैसे लोग आस्तिकता का ढोंग करते हैं और लोग उन्हें आस्तिक समझ लेते हैं, ऐसे ही कुछ लोग नास्तिकता का ढोंग करते हैं और लोग उन्हें नास्तिक समझ लेते हैं।

कुछ लोग आस्तिक होने का दावा करते हैं और काम नास्तिकता के करते हैं, ऐसे ही कुछ लोग नास्तिक होने का दावा करते हैं लेकिन धार्मिक परंपराओं का पालन करते हैं।

किसी भी बूढे नास्तिक के बच्चों के जीवन साथियों को देख लीजिए, अपने बच्चों का विवाह वह उसी रीति के अनुसार करता है, जो कि उसके पूर्वजों का धर्म सिखाता है और जिसके इन्कार का दम भरकर वह बुद्धिजीवी कहलाता है।

नास्तिकों को भी आजीवन अपने बारे में यही भ्रम रहता है कि वे नास्तिक हैं, जब कि वे भी उसी तरह के पाखंड का शिकार होते हैं, जिस तरह के पाखंड का शिकार वे आस्तिकता के झूठे दावेदारों को समझते हैं।

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